डीडीहाट के मिर्थी और चौबाटी, कनालीछीना के डांगटी और बेरीनाग के हजेती में पिरूल से पैदा होगी बिजली
जिले में सर्वाधिक जंगल चीड़ के हैं। चीड़ की पत्ति्तयां जिसे पिरूल कहा जाता है तैलीय होती हैं। चीड़ के जंगलों में यह जमा रहती है, हवा लगने पर वृक्ष से उड़ कर दूर -दूर पहुंच जाती हैं। तैलीय होने से पीरूल जल्दी आग पकड़ लेता है। वनाग्नि के लिए इसे सबसे बड़ा कारक माना जाता है। दूसरी तरफ तैलीय होने से यह बरसाती पानी को जमीन के अंदर तक नहीं पहुंचने देता है। जिसके चलते चीड़ के जंगलों के आसपास पानी का संकट बना रहता है। जिसे देखते हुए चीड़ के पीरूल से बिजली बनाने का प्रयास लंबे समय से चल रहा है।
वैकल्पिक ऊर्जा विभाग के माध्यम से अनुबंध हो चुके हैं। जिले के चार स्थानों डीडीहाट के चौबाटी और मिर्थी, कनालीछीना विकास खंड के डांगटी और बेरीनाग के हजेती में चीड़ के पीरूल से बिजली पैदा होगी। चारों परियोजनाएं प्रारंभ हुई तो जल्दी ही जिले में चीड़ के पिरूल से सौ किलोवॉट बिजली पैदा होगी। 25 किलोवॉट बिजली उत्पादन के लिए सभी कार्य पूरे कर मशीन लगा दी गई है। 25 किलोवॉट की परियोजना स्थापित करने का खर्च 25 लाख रुपये है। तीन अन्य स्थानों पर भी आगे की कार्रवाई प्रारंभ हो चुकी है। प्रदेश में कुल 38 इकाईयां स्थापित होनी हैं। ये परियोजनाएं स्वरोजगार उपलब्ध कराने के अलावा वनाग्नि को रोकने में सहायक साबित होंगी।